Ved हिंदी

 


प्रभु! यह शरीर आपकी सेवा का साधन होकर जब आप के पथका अनुरागी हो जाता है, तब आत्मा, हितेषी, सुहृद और प्रिय व्यक्ति के समान आचरण करता है। आप जीव के सच्चे हितैषी,प्रियतम और आत्मा ही है और सदा सर्वदा जीव को अपनाने के लिए तैयार भी रहते हैं ।इतनी सुगमता होने पर तथा अनुकूल मानव शरीर को पाकर भी लोग सख्यभाव आदिके द्वारा आप की उपासना नहीं करते,आप में नहीं रमते, बल्कि इस विनाशी और असत शरीर का तथा उसके संबंधियोंमें ही रह जाते हैं,उनकी उपासना करने लगते हैं और इस प्रकार अपने आत्मा का हनन करते हैं, उसे अधोगति में पहुंचाते हैं। भला यह कितने कष्ट की बात है!इसका फल यह होता है कि उनकी सारी वृतिया, सारी वासनाए शरीर आदि में ही लग जाती है और फिर उनके अनुसार उनको पशु-पक्षी आदि के न जाने कितने बुरे बुरे शरीरग्रहण करने पड़ते हैं और इस प्रकार अत्यंत भयावह जन्म मृत्यु रूप संसार में भटकना पड़ता है।

आप जगत के स्वामी है और अपनी आत्मा ही है। इस जीवन में ही मेरा मन आप में रम जाए। मेरे स्वामी! मेरा ऐसा सौभाग्य कब होगा,जब मुझे इस प्रकार का मनुष्य जन्म प्राप्त होगा?



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